Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024: जानिए कैसे रणनीतिक चूक ने भाजपा को मजबूत किया
Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में चल रहे विधानसभा चुनावों के दूसरे चरण में भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर दिखाई दे रही है। 2014 के चुनावों में भाजपा ने जम्मू प्रांत की 37 सीटों में से 25 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार उसे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में भाजपा के खिलाफ एंटी-इनकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर दिख रही है। लोगों में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद भी रोजगार, विकास और निवेश के वादे पूरे न होने पर नाराजगी है।
Jammu and Kashmir Assembly Elections 2024
हालांकि, शुरुआत में भाजपा कमजोर नजर आ रही थी, लेकिन अब उसने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। दूसरी तरफ, कांग्रेस ने चुनावी बढ़त को अपने हाथ से जाने दिया। पार्टी के अंदरुनी झगड़े, उम्मीदवार चयन में देरी और कमजोर प्रचार अभियान ने उसे नुकसान पहुंचाया है। भाजपा ने आक्रामक प्रचार के साथ तेजी से अपनी स्थिति सुधार ली है और कांग्रेस पीछे छूट गई है।
कांग्रेस की रणनीति में कमियां
कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी समस्या रही है कि उसने जम्मू प्रांत में सीटों के लिए सही उम्मीदवारों का चयन नहीं किया। पार्टी ने ब्राह्मण और महाजन समुदायों को नजरअंदाज करते हुए केवल दो ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया। जबकि जम्मू क्षेत्र के कई विधानसभा क्षेत्रों में ये समुदाय प्रभावशाली माने जाते हैं।
इसके अलावा, चाम्ब और अखनूर जैसे परंपरागत कांग्रेस के गढ़ों में भी पार्टी को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। चाम्ब सीट से तारा चंद को उम्मीदवार बनाया गया, जो पहले तीन बार विधायक रह चुके हैं। लेकिन, पार्टी के ही बागी उम्मीदवार सतीश शर्मा, जो तीन बार के विधायक और सांसद रहे मदन लाल शर्मा के बेटे हैं, ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। यह बगावत कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है।
कांग्रेस ने क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए कई कदम उठाए, जैसे एम.के. भारद्वाज और बानो महाजन को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करना, लेकिन इससे पार्टी के चुनावी अभियान में ज्यादा फायदा नहीं हो पाया।
भाजपा की आक्रामक प्रचार रणनीति
भाजपा ने शुरू में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट को लेकर भ्रम और विरोध का सामना किया, लेकिन पार्टी ने जल्दी ही इसे संभाल लिया। पार्टी ने आक्रामक प्रचार रणनीति अपनाई और अपने सभी बड़े नेताओं को मैदान में उतार दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मिलकर जम्मू क्षेत्र में 30 से अधिक रैलियां की हैं।
भाजपा ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास, रोजगार और सुरक्षा के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। पार्टी का दावा है कि मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में पांच लाख रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया है, और उसने सांबा जिले में टोल प्लाजा हटाने जैसे कदम भी उठाए हैं, जिससे जनता में उसकी पकड़ मजबूत हुई है।
राहुल गांधी का प्रचार अभियान और कांग्रेस की विफलता
राहुल गांधी ने जम्मू क्षेत्र में कुछ रैलियों को संबोधित किया, जिसमें उन्हें जनता का समर्थन भी मिला, खासकर उनकी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान। लेकिन कांग्रेस की ओर से प्रचार में वह आक्रामकता और उत्साह नहीं दिखा जो भाजपा के अभियान में नजर आ रहा है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की रैलियों की भी बड़ी मांग थी, लेकिन पार्टी को उनके कार्यक्रम को लेकर स्पष्टता नहीं मिली।
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राहुल गांधी की जम्मू में एक रैली का आयोजन ऐसे स्थान पर किया गया जहां की क्षमता महज 3,000 से 4,000 लोगों की थी। पार्टी नेताओं का मानना है कि अगर यह रैली जम्मू की सीमा से सटे आर.एस. पुरा में होती तो ज्यादा प्रभावशाली हो सकती थी।
कांग्रेस के अंदरूनी मतभेद
कांग्रेस के लिए एक और बड़ी चुनौती रही है कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ग़ुलाम नबी आज़ाद की पार्टी (डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी) छोड़कर लौटना चाहा, लेकिन उन्हें पार्टी में जगह नहीं दी गई। इन नेताओं की वापसी से कांग्रेस को जम्मू क्षेत्र की तीन सीटों पर फायदा हो सकता था, लेकिन अब ये नेता निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
इसके अलावा, पार्टी के कुछ खास नेताओं की मांग थी कि उन्हें उनकी पसंद की सीट से टिकट मिले, जिसके कारण उम्मीदवार चयन में देरी हुई और कई मामलों में गलत निर्णय लिए गए।
भाजपा को लाभ, कांग्रेस की चिंता
भाजपा के मेन प्रवक्ता सुनील सेठी का कहना है कि कांग्रेस चुनाव से पहले ही “हार के मूड” में है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के पास अब कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वह राज्य का दर्जा बहाल करने जैसी पुरानी मांगों पर अटकी हुई है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पहले ही इस बात का आश्वासन दे चुके हैं।
दूसरी ओर, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), जो कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है, भी चिंतित है। NC के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे में जम्मू के मैदानी इलाकों पर जोर दिया, लेकिन उम्मीदवारों के चयन में देर और कमजोर प्रचार से वह पीछे रह गई है।